संधि के बारे में जाने - आज की इस पोस्ट में हिंदी व्याकरण के 'संधि' टॉपिक पर महत्वपूर्ण लेख लिखा गया है। इसमें संधि किसे कहते हैं, संधि की परिभाषा, व्यंजन संधि, 10 examples of swar sandhi in hindi, विसर्ग संधि किसे कहते हैं, sandhi trick, दीर्घ संधि, sandhi worksheets in hindi, संस्कृत में संधि, उदाहरण, sandhi chart in hindi pdf download, व्यंजन संधि के कितने भेद है आदि से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है।
संधि किसे कहते है
संधि दो शब्दों से मिलकर बना है – सम् + धि। जिसका अर्थ होता है ‘मिलना ‘। जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे संधि कहते हैं अर्थात वह ध्वनि विकार जो परस्पर दो वर्णों के मेल से उत्पन्न होता है, उसे संधि कहते है।
संधि के उदहारण :-
- चरण+अमृत = चरणामृत
- उत्तम+अंग = उत्तमांग
- सत् + आनंद =सदानंद।
संधि-विच्छेद किसे कहते है?
संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है। अथार्त जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनती हैं तब जो परिवर्तन होता है , उसे संधि कहते हैं।
संधि-विच्छेद के उदाहरण-
- धनार्थी = धन+अर्थी
- धर्माधर्म = धर्म+अधर्म
- नीलांजन = नील+अंजन
संधि के प्रकार/भेद कितने है?
संधि के तीन भेद/प्रकार होते हैं :-
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
स्वर संधि किसे कहते है?
जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है तब जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं। जब दो स्वर मिलते हैं तब उससे जो तीसरा स्वर बनता है, उसे स्वर संधि कहते हैं।
स्वर संधि के उदहारण :-
- विद्या + आलय = विद्यालय।
- उत्तम+अंग = उत्तमांग
- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी।
- सत् + आनंद =सदानंद।
- सूर्य + उदय = सूर्योदय।
- मुनि + इंद्र = मुनीन्द्र।
- चरण+अमृत = चरणामृत
- कवि + ईश्वर = कवीश्वर।
स्वर संधि के भेद/प्रकार -
(क) दीर्घ संधि किसे कहते है?
जब ( अ , आ ) के साथ ( अ , आ ) हो तो ‘ आ ‘ बनता है , जब ( इ , ई ) के साथ ( इ , ई ) हो तो ‘ ई ‘ बनता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ ( उ , ऊ ) हो तो ‘ ऊ ‘ बनता है।
दीर्घ संधि के उदहारण :-
- धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
- देव+अंत = देवांत
- रवि + इंद्र = रविन्द्र
- नील+अंजन = नीलांजन
- मुनि + ईश =मुनीश
- सूर्य+अस्त = सूर्यास्त
- मुनि +इंद्र = मुनींद्र
- नील+अम्बर = नीलाम्बर
- वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
- दीर्घ +आयु = दीर्घायु
- विधु + उदय = विधूदय
(ख) गुण संधि किसे कहते है ?
जब ( अ , आ ) के साथ ( इ , ई ) हो तो ‘ ए ‘ बनता है , जब ( अ , आ )के साथ ( उ , ऊ ) हो तो ‘ ओ ‘बनता है , जब ( अ , आ ) के साथ ( ऋ ) हो तो ‘ अर ‘ बनता है। उसे गुण संधि कहते हैं।
गुण संधि के उदहारण :-
- नर + इंद्र + नरेंद्र
- गज+इंद्र = गजेंद्र
- ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
- उप+इंद्र = उपेंद्र
- भारत + इंदु = भारतेन्दु
- स्व+इच्छा = स्वेच्छा
- सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण
- राज+ईश = राजेश
- महा+ऋषि = महर्षि
(ग) वृद्धि संधि किसे कहते है ?
जब ( अ , आ ) के साथ ( ए , ऐ ) हो तो ‘ ऐ ‘ बनता है और जब ( अ , आ ) के साथ ( ओ , औ )हो तो ‘ औ ‘ बनता है। उसे वृद्धि संधि कहते हैं।
वृद्धि संधि के उदहारण :-
- मत+एकता = मतैकता
- एक+एक = एकैक
- धन + एषणा = धनैषणा
- सदा+एव = सदैव
- वसुधा+एव = वसुधैव
- जल+ओक = जलौक
- महा + ओज = महौज
- वन+औषधि = वनौषधि
- महा+औषधि = महौषधि
(घ) यण संधि किसे कहते है?
जब ( इ, ई ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘य‘ बन जाता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘व्‘ बन जाता है , जब ( ऋ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘र‘ बन जाता है।
यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त्त पद होते हैं-
(1) य से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए।
(2) व् से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए।
(3) शब्द में त्र होना चाहिए।
यण संधि के उदहारण :-
- अति+अधिक = अत्यधिक
- इति + आदि = इत्यादि
- प्रति+उपकार = प्रत्युपकार
- प्रति+ऊष = प्रत्यूष
- अनु + अय = अन्वय
- अति+ओज = अत्योज
- अभी + आगत = अभ्यागत
- शिशु+अंग = शीश्वांग
(ड) अयादि संधि किस कहते है?
जब ( ए , ऐ , ओ , औ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ए – अय‘ में , ‘ऐ – आय‘ में , ‘ओ – अव‘ में, ‘औ – आव‘ में जाता है। य , व् से पहले व्यंजन पर अ , आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है लेकिन अगर और कोई विच्छेद न निकलता हो तो + के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखना होगा। उसे अयादि संधि कहते हैं।
अयादि संधि के उदहारण :-
- ने + अन = नयन
- नै+अक = नायक
- भो + अन = भवन
- भौ+अक = भावक
- पो + इत्र = पवित्र
- पौ+अन = पावन
व्यंजन संधि किसे कहते है ?
जब व्यंजन को व्यंजन या स्वर के साथ मिलाने से जो परिवर्तन होता है , उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
व्यंजन संधि के उदहारण :-
- दिक् + अम्बर = दिगम्बर
- दिक्+गज = दिग्गज
- अभी + सेक = अभिषेक
- वाक्+दुष्ट = वाग्दुष्ट
व्यंजन संधि के नियम -
①. यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मिलन न या म वर्ण ( ङ,ञ ज, ण, न, म) के साथ हो तो क् को ङ्, च् को ज्, ट् को ण्, त् को न्, तथा प् को म् में बदल दिया जाता है।
→ क् के ङ् में बदलने के उदहारण :-
- प्राङ्मुख = प्राक् + मुख
- वाक् + मय = वाङ्मय
→ ट् के ण् में बदलने के उदहारण :-
- षट् + मास = षण्मास
- षट् + यंत्र = षड्यंत्र
- षण्मुख = षट् + मुख
→ त् के न् में बदलने के उदहारण :-
- उत् + मूलन = उन्मूलन
- उत् + नति = उन्नति
→ प् के म् में बदलने के उदहारण :-
- अप् + मय = अम्मय
②. जब किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण से या य्, र्, ल्, व्, ह से या किसी स्वर से हो जाये तो क् को ग् , च् को ज् , ट् को ड् , त् को द् , और प् को ब् में बदल दिया जाता है अगर स्वर मिलता है तो जो स्वर की मात्रा होगी वो हलन्त वर्ण में लग जाएगी लेकिन अगर व्यंजन का मिलन होता है तो वे हलन्त ही रहेंगे।
उदहारण :-
- दिक् + अम्बर = दिगम्बर
- अच् +अन्त = अजन्त
- षट् + आनन = षडानन
- षडंग = षट् + अंग
- तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
- तदनन्तर = तत् + अनन्तर
- जगदम्बा = जगत् + अम्बा
- अप् + द = अब्द
- अब्ज = अप् + ज
③. जब त् का मिलन ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व से या किसी स्वर से हो तो द् बन जाता है। म के साथ क से म तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर ‘ म ‘ की जगह पर मिलन वाले वर्ण का अंतिम नासिक वर्ण बन जायेगा।
उदहारण :-
- सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प
- सम् + गम = संगम
- सम् + चय = संचय
- सम् + जीवन = संजीवन
- दम् + ड = दण्ड/दंड
- खम् + ड = खण्ड/खंड
- सम् + तोष = सन्तोष/संतोष
- सम् + देह = सन्देह
- सम् + भव = सम्भव/संभव
- सत् + भावना = सद्भावना
- सत् + धर्म = सद्धर्म
④. जब त् का मिलन अगर श् से हो तो त् को च् और श् को छ् में बदल दिया जाता है। जब त् या द् के साथ च या छ का मिलन होता है तो त् या द् की जगह पर च् बन जाता है।
उदहारण :-
- उत् + चारण = उच्चारण
- उत् + श्वास = उच्छ्वास
- सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
⑤. त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् बन जाता है। म् के साथ य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण का मिलन होने पर ‘म्’ की जगह पर अनुस्वार ही लगता है।
उदहारण :-
- सम् + रचना = संरचना
- सम् + वत् = संवत्
- उत् + चारण = उच्चारण
- उत् + डयन = उड्डयन
⑥. जब त् का मिलन ह् से हो तो त् को द् और ह् को ध् में बदल दिया जाता है। त् या द् के साथ ज या झ का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ज् बन जाता है।
उदहारण :-
- सत् + जन = सज्जन
- वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार
- तत् + हित = तद्धित
⑦. अगर म् के बाद क् से लेकर म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। त् या द् के साथ जब ल का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ‘ल्’ बन जाता है।
उदहारण :-
- उत् + लास = उल्लास
- विद्युत् + लेखा = विद्युल्लेखा
- किम् + चित = किंचित
- सम +तोष = संतोष
⑧. स्वर के बाद अगर छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। त् या द् के साथ ट या ठ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ट् बन जाता है। जब त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ की मिलन होने पर त् या द् की जगह पर‘ड्’बन जाता है।
उदहारण :-
- तत् + टीका = तट्टीका
- स्व + छंद = स्वच्छंद
- संधि + छेद = संधिच्छेद
⑨. म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। त् या द् के साथ ‘ह’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर द् तथा ह की जगह पर ध बन जाता है।
उदहारण :-
- उत् + हार = उद्धार/उद्धार
- सम् + मति = सम्मति
- सम् + मान = सम्मान
⑩. ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। किसी भी स्वर के साथ ‘छ’ के मिलन पर स्वर तथा ‘छ’ के बीच ‘च्’ आ जाता है।
उदहारण :-
- आ + छादन = आच्छादन
- परि + नाम = परिणाम
- प्र + मान = प्रमाण
⑪. म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन आने पर म् का अनुस्वार हो जाता है।‘त् या द्’ के साथ ‘श’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर ‘च्’ तथा ‘श’ की जगह पर ‘छ’ बन जाता है।
उदहारण :-
- उत् + श्वास = उच्छ्वास
- सम् + योग = संयोग
- सम् + लग्न = संलग्न
⑫. स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष बना दिया जाता है।
उदहारण :-
- वि + सम = विषम
- अनु + संग = अनुषंग
- वि + सम + विषम
⑬. यदि किसी शब्द में कही भी ऋ, र या ष हो एवं उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी ‘न’ हो तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर,क, ख ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व में से कोई भी वर्ण हो तो सन्धि होने पर ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जब द् के साथ क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह का मिलन होता है तब द की जगह पर त् बन जाता है।
उदहारण :-
- राम + अयन = रामायण
- उद् + ताल = उत्ताल
- तद् + पर = तत्पर
- उद् + कल = उत्कल
विसर्ग संधि किसे कहते है?
विसर्ग के बाद जब स्वर या व्यंजन आ जाये तब जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं।
विसर्ग संधि के नियम :-
①. विसर्ग के साथ च या छ के मिलन से विसर्ग के जगह पर ‘श्’बन जाता है। विसर्ग के पहले अगर ‘अ’और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे , पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है।
उदहारण :-
- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल ;
- दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
- निः + छल = निश्छल
- अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना
②. विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है।
उदहारण :-
- धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
- दु: + शील = दुश्शील
- चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
- नि: + शांत = निश्शान्त
- निः + छल = निश्छल
③. विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता ह। विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ बन जाता है।
उदहारण :-
- दुः + शासन = दुश्शासन
- निः + शुल्क = निश्शुल्क
- निः + आहार = निराहार
- नि: + छल = निश्छल
- नि: + चय = निश्चय
④. विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा।
उदहारण :-
- अन्त: + तल = अन्तस्तल
- निस्तेज = निः + तेज
- निः + रोग = निरोग
⑤. विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा।
उदहारण :-
- निः + कलंक = निष्कलंक
- दुः + कर = दुष्कर
- निष्काम = निः + काम
- नमः + ते = नमस्ते
- दुः + साहस = दुस्साहस
⑥. विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा।
उदहारण:-
- प्रातः + काल = प्रात: काल
- तप: पूत = तप: + पूत
- अन्त: करण = अन्त: + करण
अपवाद -
- भा: + कर = भास्कर
- बृह: + पति = बृहस्पति
- चतुः + पाद = चतुष्पाद
⑦. यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा साथ ही ‘इ’ व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’ की हो जायेगी।
उदहारण:-
- नि: + रस = नीरस
- नि: + रोग = नीरोग
- चक्षूरोग = चक्षु: + रोग
⑧. विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है।
उदहारण:-
- मनस्संताप = मन: + संताप
- नि: + सन्देह = निस्सन्देह
- निस्संतान = नि: + संतान
- अंतः + करण = अंतःकरण
⑨. विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा।
उदहारण -
- अत: + एव = अतएव
- पय: + आदि = पयआदि
⑩. विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ, ग, घ, ड॰, ´, झ, ज, ड, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा।
उदहारण:-
- मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा
- सर: + ज = सरोज
- अध: + भाग = अधोभाग
- मन: + रंजन = मनोरंजन
- तपोभूमि = तप: + भूमि
- यशोदा = यश: + दा
अपवाद -
- पुन: + अवलोकन = पुनरवलोकन
- अन्त: + द्वन्द्व = अन्तद्र्वन्द्व
- अन्त: + यामी = अन्तर्यामी
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